Tahiba
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Courtesy: www.nationalityforall.org |
मैंने देखा हैं
उसको
भट्टे की आग में जलते हुए,
सुबह से शाम,भट्टे की आग में जलते हुए,
और शाम से फिर
अगली सुबह तक,
अगले दिन की ज़ददोज़हद का
सोचते हुए
मैंने देखा है उसको
उठाते हुए
बदबू मारते गलते हुए जानवरों को,
अपनी उन्ही हाथो से
जिनसे वह बोता हैं
अन्न का दाना
जो तुम दबाये बैठे हो
अपने गोदामों में,
सदियों से थोपी हुई ‘चादर’ को
जो डाली थी गयी
उसके ऊपर
कई सालो पहले
ये बताकर
की तुम
हमेशा से ऐसे ही थे,
गंदे और भिन्न....
मैंने देखा हैं उसको
रहते हुए सुअरो के बीच,
सूअर की तरह,
जीते हुए,
लड़ते हुए,
लड़खड़ाते हुए,
बिलकते हुए,
आक्रोश में चीखते हुए
छोटे-छोटे
एक बिलांद के अँधेरे कमरों में,
रौशनी को ढूँढ़ते हुए
मैंने देखा है उसको
अपनी बीवी को नशे में धुत्त,
सताते ,
अपने शोषण की झल्लाहट उतारते हुए ,
शोषण से शोषण करते हुए
मैंने देखा है उसकी बीवी को,
खेतो में
घास के बदले
अपने जिस्म का मोलतोल करते हुए, ...
मैंने देखा है उसी 'चादर' के जोर से
उसके अंश को जलते हुए
स्कूल में पढाई के बदले
मैदान के घास उखाड़ते हुए
मैंने देखा है उसके सालो से रहे कच्चे मकानों को
अध्-पक्का बनते हुए,
और उसके बी पी एल कार्ड को कटते हुए
मैंने देखा है उसके ऊपर
कई तंज़ कसते हुए,
"अरे कुत्ते की पूछ कभी सीधी थोड़े न होती है, टट्टी कभी फूल थोड़े ना बनती है "
मैंने देखा है उसकी
एक प्रतिरोध की आवाज़ पर
उसके छित्ड़े उड़ते हुए,
रेल की पटरी से
मैंने देखा है भालो से,
पिस्तौल से,
कुल्हाड़ी से
उसके मॉस को निकलते हुए
मैंने देखा है उसके नाम पर
राजनितिक घरो के साम्राज्य बनते ,
मैंने देखा है उनकी
आरक्षित सीटो पर
सुरक्षित राजनीति करते हुए,
मैंने देखा है कई भोतमांगे
जैसे परिवारों को,
बठानी टोलो को,
आवाज़ लागते हुए,
इन्साफ की गुहार में ,
दरवाज़ा खटखटाते हुए,
कि शायद कोई सुन ले,
शायद लोकतंत्र का कुछ हिस्सा
वह भी देख ले,
खाली आया हमेशा,
वह अपने जैसो के बीच,
पुलिस और क़ानून
बड़े लोगो की तीमारदारी में लगे हुए देखा उसने,
आज भी जहाँ पूंजी का केंद्र बनता है,
हमला तीखा हो जाता है
आज भी बाकी है मिलनी ,
आधी कीमत उसे,
खेतों में बहाए अपने खून पसीने की,
आज
जब में उससे पूछती हूँ,
इतने सालो में क्या बदला है,
" वो कहता है,
आज भी मैं दिहाड़ी करता हूँ,
मेरी पत्नि भी दिहाड़ी करती है,
मेरा बेटा भी दिहाड़ी करता है,
मेरी बेटी भी दिहाड़ी करती है,
फिर भी
कल पे मुझे भरोसा नहीं है
की कल मुझे खाना मिलेगा के नहीं,
इन्साफ मिलेगा की नहीं…
सुनता हूँ
इलेक्शन आने वाले है...”